ZERO

जीरो

जीरो तुम कितने सालीन हो,
ख़ामोश और गोल मटोल,
शायद इसीलिए लोग
कभी कभी शक्ल पर आकर
तुम्हारी कीमत नहीं समझते।

पर तुम अमूल्य हो
अनंत की तरह ,
हर एक अंक की तरह।

तुम्हारे जोड़ और घटाव ही हैं
तुम्हारी असली सालीनता ,
तुम बना रहने देते हो हर एक अंक को,
अद्वितीय, जैसा वह पहले था।

गुणा और भाग बताते हैं तुम्हें दिलेर,
जो तुम बड़े बड़े अंकों को भी,
कर लेते हो अपने में समाहित ।

तुम्हारी कीमत सिर्फ तुम समझते हो,
या फिर वो जो जाना चाहता है
इकाई से दहाई की ओर,
या फिर जो करना चाहता है
दिन को दुना और  रात को चौगुना।।

- आदर्श कुमार शुक्ल

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